Saturday, September 01, 2012

विपरीत

एक सन्नाटा
एक ख़ामोशी
किस कदर
एक दूजे के साथ है
"सन्नाटा" जमे हुए लावे का
"ख़ामोशी "सर्द जमी हुई बर्फ की
दोनों एक दूजे के विपरीत
पर संग संग एक दूजे को
निहारते सहलाते से अडिग है
लावा जो धधक रहा है
जब बहेगा आवेग से
तो जमी बर्फ का अस्तित्व
भी नहीं रह पायेगा
हर हसरत हर कशिश
उस की उगलते
काले धुंए में
तब्दील हो जाएगी
तय है दोनों के अस्तित्व का
नष्ट होना ...फिर भी
साथ साथ है दोनों
ख़ामोशी से एक दूजे को सुनते हुए
एक दूजे के साथ रहने के एहसास
को सहते हुए ...
ठीक एक आदम और हव्वा से
जो सदियों से प्रतीक हैं
इसी जमे लावे के
और सर्द होती जमी बर्फ के !!!!

यह रचना इस चित्र से जुडी हुई है .....जो अपनी सुन्दर छवि से अनेक रचनाएं मुझसे लिखवा गयी ..यह उन में से एक है ...

13 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

चित्र और शब्द एक दूसरे के पूरक हैं..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कई चित्र होते ऐसे,दिल में जाती बैठ
रचना लिखे वगैर,नही निकलती पैठ,,,,,,

RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

अरुन अनन्त said...

बहुत ही सुन्दर रचना

vandana gupta said...

शब्दो ने चित्र से बखूबी न्याय किया है।

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.....
जानते बूझते हुए गरम लावा और बर्फ की चट्टानें साथ है......
सुन्दर और गहन भाव लिए रचना..

अनु

Alpana Verma said...

सुन्दर चित्र और उस से उपजी कविता भी उतनी ही खूबसूरत.
कई बार कुछ चित्र मन के भावों को जगा देते हैं.

सदा said...

गहन भाव लिये उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति .. आभार

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

चित्र सुंदरता से परिभाषित हो रहा है.सुंदर रचना....

Arvind Mishra said...

चित्र तो भय का संचरण कर रहा है और कविता के भाव भी डरा रहे हैं -अनिहेलेसन का !

वन्दना अवस्थी दुबे said...

रंजू, तुम्हारी कवितायें पढ़ते हुए मैं अचरज में पड़ जाती हूँ....पता नहीं कैसे लिख लेती हो इतना सुन्दर...सटीक और शब्द-शब्द अपने अर्थ प्रतिध्वनित करता हुआ...कितना मुश्किल है कविता लिखना....

रंजू भाटिया said...

@ वंदना जो दिल में आता है लिख लेती हूँ ..शुक्रिया आप सभी का तहे दिल से जो इतना स्नेह देते हैं मेरे लिखे को ..:)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चित्र को शब्द देती सुंदर रचना

दिगम्बर नासवा said...

कई बार कई चीजें अपने आप उगलवा लेते हैं अपने हिस्से का लावा जो दिल को चीर के निकल आता है ... सन्नाटे की तरहा ... ख़ामोशी की जुबा बन के ...