Monday, September 24, 2012

सच और सपना

उम्र के उस
नाजुक मोड़ पर
जब लिखे गए थे
यूँ ही बैठे बैठे
प्रेम के ढाई आखर
और उस में से
झांकता दिखता था
पूरा ..
सुनहरा रुपहला सा संसार
रंग बिरंगे सपने..
दिल पर छाया खुमार
मस्तमौला सी बातें
दिल में चढ़ता -उतरता
जैसे कोई ज्वार

और .....
अब न जाने
कितने आखर..
प्रेम भाव से ..
रंग डाले हैं पन्ने कई ..
पर कोई कोना मन का
फ़िर भी खाली दिखता है
दिल और दिमाग की ज़ंग में
अभेद दुर्ग की दिवार का
पहरा सा रहता है ....

सोचता है तब मन
बेबस हो कर.....
तब और अब में
इतना बड़ा फर्क क्यों है ?

12 comments:

Maheshwari kaneri said...

अब न जाने
कितने आखर..
प्रेम भाव से ..
रंग डाले हैं पन्ने कई ..
पर कोई कोना मन का
फ़िर भी खाली दिखता है
दिल और दिमाग की ज़ंग में
अभेद दुर्ग की दिवार का
पहरा सा रहता है ....भावपूर्ण सुन्दर रचना..

सदा said...

भावमय करते शब्‍द ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्रेम भाव में अनेकों पन्ने रंगे होने पर भी मन का कोई कोना खाली क्यों है ? बंधन की दीवार शायद जकड़े हुये है ।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

ye dhai aakhar prem??
iss chhote se shabd ke mayne bhi chakkarghinni ke tarah ghumte rahte hian:)

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्दों को हम ही महत्व देते हैं, हम ही महत्वहीन भी कर देते हैं।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

प्रेम भाव से ..
रंग डाले हैं पन्ने कई ..
पर कोई कोना मन का
फ़िर भी खाली दिखता है
दिल और दिमाग की ज़ंग में
अभेद दुर्ग की दिवार का
पहरा सा रहता है ....

भावमय बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

यह भी जीवन का एक रंग है

ANULATA RAJ NAIR said...

सोच में तो हम भी पड़ गए.....
शायद वक्त का तकाजा है ...

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति...

अनु

travel ufo said...

बढिया रचना

Anju (Anu) Chaudhary said...

तुझसे दूर होने की खता में, हम खुद को ही तड़पाते हैं...
रस्मे मोहोब्बत में वफाएं ,शायद ऐसे ही निभाते हैं !!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सोचता है तब मन
बेबस हो कर.....
तब और अब में
इतना बड़ा फर्क क्यों है ?
क्या बात है....बहुत सुन्दर.

Arvind Mishra said...

yah जो विलक्षण rachnadharmita है आपकी उसी ek khaalee hue कोने के कारण hee तो है !