Wednesday, June 10, 2015

उड़ान (लघुकथा)

अरे ! वाह, अमित यार तू कितनी किस्मत वाला है कि तुझे पता है सिर्फ ६ महीने हैं तेरे पास ज़िन्दगी के।खुद से बाते करता अमित मुस्कारने लगा ,और सोचने लगा कि उन लोगो में से नहीं कि अभी बैठा है अभी नहीं और इसी ख्याल में वह पूरी ज़िन्दगी का लेखा जोखा करने बैठ गया।
बचपन ,शादी और उसका इकलौता बेटा जो अब अमरीका में है पढ़ने गया वही का हो के रह गया। क्या बताऊँ उसको अब ,पर यह कैंसर का दर्द तो मुझे अकेले ही सहना है आखिर। क्या करेगा वह आ कर ?मेरे दर्द के खत्म होने का इंतज़ार ही न ?
उसकी "उड़ान "उसको सात समुन्दर पार ले गयी और मेरी "उड़ान "मुझे सात आसमान पार ले जायेगी। इस की तैयारी में ज़िन्दगी के बाकी बचे हुए सपनो को पूरा करने में लगा दूंगा या सोचते ही जैसे उसका दर्द कम हो गया और उस लम्बी उड़ान के लिए पंख निकल आये !

3 comments:

Asha Joglekar said...

बहुत ही सुंदर कहानी शिक्षाप्रद भी। सचमुच समय रहते ही हमें वह सब कर लेना चाहिये जो करना चाहते हैं।

Onkar said...

वाह, बहुत सुन्दर

Sanjay Kumar Sharma said...

बहुत सुन्दर
कुलदेवी