Sunday, June 07, 2015

ए लेटर टु गॉड....

 ए लेटर टु गॉड....
 


डियर गॉड,
मै चार साल की नन्ही सी "रीमा" हूँ ।यह मेरे साथ मेरा छोटा सा" काका खिलौना " है ।मैंने इसका नाम' बाबू "रखा है ।यह मेरे साथ हर वक़्त रहता है । इसको मै कुछ भी कहूँ तो यह सिर्फ अपनी बड़ी बड़ी आँखों से मुझे देखता रहता है ।मुझे अच्छा लगता है कि यह बोल नहीं सकता है क्योंकि मैं रोज़ दरवाज़े के पीछे इन परछाइयों को (जिनको मै अपने माँ -पापा के नाम से जानती हूँ) चीखते चिल्लाते देख के बहुत रोती हूँ ।यह दोनों सुबह से शाम ऑफिस जाते हैं और देर रात यूँ ही चिल्लाते लड़ते हैं ।मैं डर के मारे सिर्फ इनको देखती रहती हूँ और अपने बाबू से पूछती हूँ कि, क्या सब माँ पापा ऐसे ही होते हैं ?
बाबू सिर्फ मुझे देखता है और मैं बन्द दरवाज़े की तरफ , कि कब यह सब खत्म होगा और कोई मुझे भी अपने गले से लगा कर "पारी" करेगा ,मेरे स्कूल, खिलोने और आइसक्रीम के बारे में बात करेगा जैसे मै अपने बाबू से करती हूँ और उसके बिना बोले भी उसकी आँखों में सब पढ़ लेती हूँ कि" जैसे तुम मेरे साथ हो एक दिन तुम्हारे माँ पापा भी अपने सिवा तुम्हारे बारे में भी सोचेंगे ।"
पर ऐसा वो दोनों कब मेरी आँखों में पढ़ेंगे ?
गॉड ,मुझे दादी ने बताया था कि आप सब की बात सुनते हैं,प्लीज़ मेरी भी सुनिए न जैसे बाबू । आपकी नन्ही रीमा ।

(चित्र पर आधारित लघु कथा )

4 comments:

Jyoti Dehliwal said...

रंजना जी, आज कई घरों को यही वास्तविकता है. काश, नन्ही बच्ची की फरियाद भगवान जल्द ही सुन ले...सुन्दर प्रस्तुति...

रश्मि शर्मा said...

आजकल लगभग हर धर की कहानी हो गई है..बहुत अच्‍छा लि‍खा।

Asha Joglekar said...

एक नन्हे से बच्ची के मनोभावों को बहुत सुंदरता से शब्द दिये हैं।

Asha Joglekar said...

एक नन्हे से बच्ची के मनोभावों को बहुत सुंदरता से शब्द दिये हैं।